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प्‍यारी नानी

प्‍यारी नानी
त्रिलोक सिंह ठकुरेला

कितनी प्‍यारी बूढ़ी नानी, हमें कहानी कहती है।

जाते हम छुट्टी के दिन में, दूर गाँव वह रहती है।

उनके आँगन लगे हुए हैं तुलसी और अमरूद, अनार।

और पास में शिव का मंदिर पूजा करतीं घंटे चार।

हमको देती दूध, मिठाई, पूड़ी खीर बनाती हैं।

कभी शाम को नानी हमको खेत दिखाकर लाती हैं।

कभी कभी हमको समझातीं जब हम करते नादानी।

पैसे देकर चीज दिलातीं कितनी प्‍यारी हैं नानी।।

9 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

विल्कुल बाल मन की रचना लगाई है आपने!

Sunil Kumar said...
This comment has been removed by the author.
Sunil Kumar said...

bachhe nani ke ghar men hi maja lete hai sundar rachna ,badhai

निर्मला कपिला said...

naanee jitanee mamataa kahaaMM milegee| acchee rachana.

Kashvi Kaneri said...

. बहुत ही सुन्दर और प्यारा-प्यारा गीत है

Chaitanyaa Sharma said...

प्यारी कविता .....

डॉ. नागेश पांडेय संजय said...

वाह . कविता भी और प्रस्तुति भी . दोनों माशा अल्लाह .बधाई .

बाल मंदिर के लिए रचना भिजवाएं .

virendra sharma said...

बेहतरीन गेयात्मक लयात्मक भाव प्रधान बालगीत .आज ऐसे बाल गीतों की ज़रुरत है .बाबा ब्लेक शीप हेव यु एनी वूल की भीड़ -चाल में .बधाई .

डॅा. व्योम said...

बहुत अच्छी और पठनीय रचनाएँ ब्लाग पर देने के लिए वधाई। अच्छी लगी त्रिलिक सिंह ठकुरेला की यह कविता। बाल प्रतिबिम्ब के लिए कोई बाल कविता भेजें।

www.balpratibimb.blogspot.com